परम सन्त महात्मा श्री यशपाल जी महाराज ने अपने सद्गुरुदेव परम सन्त महात्मा श्री बृजमोहन लाल जी महाराज द्वारा प्रदान की गई आनन्द-योग पद्धति के सिद्धान्तों का जनमानस में प्रचार व प्रसार हेतु ‘अखिल भारतीय सन्तमत सत्संग’ की स्थापना की | आनन्द-योग राजयोग का एक परिष्कृत प्रारूप है जिसमें राजयोग में आने वाली कठनाइयों को दूर करके सहजता पूर्वक आध्यात्म के उच्चतम शिखर पर पहुँचाया जाता है | आनन्द-योग वही पवित्र ज्ञान है जो प्राचीन आध्यात्मिक विद्या (ब्रह्म-ज्ञान), महर्षि अष्टावक्र महाराज जी ने अपने प्रिय शिष्य राजा जनक को प्रदान कर उन्हें जीवन के वास्तविक उद्देश्य आत्म-साक्षात्कार रुपी अनन्त सत्य का दिग्दर्शन कराया | यह अध्यात्म विद्या केवल हिन्दुओं की ही धरोहर नहीं रही वरन् इसका प्रचार प्रसार अन्य धर्मो में भी हुआ | मुस्लिम सन्तों की एक लम्बी श्रृंखला रही जिन्होंने बड़े त्याग व बलिदान के साथ इस ज्योति को जलाये रखा | हज़रत बाकी बिल्ला साहब कुद्दुसुर्रुह नक्श बन्दिया पहले मुस्लिम सन्त हुए जो भारत में आये और आपने भारत में इस विद्या का प्रचार व प्रसार किया | हज़रत मौलाना फज़ल अहमद खाँ साहिब कुद्दुसुर्रुह ने सर्व प्रथम हिन्दुओं में इस विद्या का प्रचार किया | आपने अपने प्रिय शिष्य परम सन्त महात्मा रामचन्द्र जी महाराज को अपना उत्तराधिकारी चुना |

   सन्त सत्गुरुओं की एक गौरवशाली श्रृंखला ने आज तक ब्रह्मज्ञान की ज्योति को प्रज्जवलित करके रखा है | इस श्रृंखला में परम सन्त महात्मा रामचन्द्र जी महाराज (पूज्य लाला जी महाराज), परम सन्त महात्मा रघुवर दयाल जी महाराज (पूज्य चच्चा जी महाराज ), आपके सुपुत्र परम सन्त महात्मा बृजमोहन लाल जी महाराज (पूज्य दद्दाजी महाराज) एवं परम सन्त महात्मा श्री यशपाल जी महाराज(पूज्य भाईसाहब जी) जैसे उच्चतम कोटि के सत्गुरु हुए |

   वास्तव में आनन्द-योग का मार्ग इतिमार्ग (Method of Addition) है जिसमें अपनी दैनिक दिनचर्या में राम-नाम अर्थात् अपने इष्टदेव का नाम जोड़ना होता है अर्थात् “दस्त ब कार, दिल ब यार”| हाथ दुनिया के भौतिक कार्यो में और दिल परमात्मा के चरणों में लगा रहे | यह साधना पद्दति सभी के लिए एक Universal Method है | आज की आधुनिक जीवन शैली में तनाव रहित जीवन बिताने के लिए गृहस्थ सन्तों एवं सत्गुरुओं की यह आध्यात्मिक विद्या एक अद्भुत देन है | इस श्रृंखला के सभी गृहस्थ सन्त एवं सत्गुरु गृहस्थ धर्मं का शास्त्रानुसार पालन करते हुए अपनी आजीविका का स्वयं उपार्जन करने वाले रहे है | जीवन पर्यन्त इन सत्गुरुओं ने सच्चे जिज्ञासुओं में ब्रह्मज्ञान का प्रचार किया व इन सन्तों ने स्वयं को गुरु कहलाने से हमेशा परहेज किया व अहं को कभी अपने पास फटकने न दिया | इसलिए इन सभी महान विभूतियों ने अपने सत्संग में प्रेम व सेवा से परिपूर्ण पारिवारिक वातावरण विकसित किया, जहाँ सब सत्संगी, सत्संग को एक परिवार व अपने को उस परिवार का सदस्य मानते है | सत्संग की इस महान परम्परा के अनुरूप इस सिलसिले के सभी सत्गुरु अपने अनुयायियों में प्रेम पूर्वक पूज्य लाला जी महाराज, पूज्य चच्चा जी महाराज, पूज्य दद्दाजी महाराज व पूज्य भाई साहबजी जैसे पारिवारिक संबोधनों से संबोधित किए जाते है |

   इन गृहस्थ सन्त सद्गुरुओं ने ऐसी विधि का विकास किया जो सबके लिए उपयोगी है, चाहे वह किसी भी जाति, धर्मं, रंग, स्तर या किसी भी व्यवसाय का हो | सत्संग में ध्यान द्वारा ईश्वर में चित्त की एकाग्रता प्राप्त करने (Concentration and Meditation) को अधिक महत्व दिया जाता है | नियमित विधि के अनुसार अभ्यास करने से सच्चे जिज्ञासुओं को सुषुप्ति, उलटधार, आध्यात्मिक चक्रों का जागरण, २४ घंटे का ध्यान, सहज समाधि और आत्म-साक्षात्कार जैसे सुन्दर और दुर्लभ आध्यात्मिक अनुभव प्राप्त होते है | अभ्यास करने वाले साधकों को आंतरिक शान्ति व आनंद की दिव्य अनुभूति होती है | ऐसे साधक के हृदय से प्रेम, दया व विनम्रता छलकती रहती है और उसके सांसारिक कार्य भी प्रभु कृपा से ठीक प्रकार चलते रहते है | ऐसा साधक अपने सूक्ष्म शरीर और कारण शरीर (आत्मा) का अनुभव ज्ञान प्राप्त कर कृतकृत्य हो जाता है और जीवन मुक्त अवस्था को प्राप्त कर लेता है |

 

चित्त की एकाग्रता प्राप्त होने से यह अनुभव होने लगता है कि हमारा अन्तःकरण ही सच्चा मन्दिर, मस्जिद, गुरुद्वारा व चर्च है, अतएव सृष्टिकर्ता परम पिता परमात्मा के दर्शन के लिए अपने अन्तःकरण में ही खोज करनी होगी | इसके लिए सत्संग ही एकमात्र महत्पूर्ण साधन है जहाँ सद्गुरू के माध्यम से सिलसिले के सद्गुरुओं की आत्मिक धार धीरे-धीरे हमारे ह्रदय को शुद्ध करती है, दूषित संस्कारों को जला देती है तथा सत्संग में लगातार सम्मिलित होने से ह्रदय को पवित्र बना देती है | अतः सर्वप्रथम आवश्यकता है ‘सच्चे सत्संग’ की |

   इस प्रकार ‘यश रूप साधना पीठ’ का उद्देश्य अपनी गृहस्थी के संपूर्ण कार्यों को सुन्दरता व दक्षतापूर्वक करते हुए साथ-साथ अध्यात्म की उच्चतम अवस्था को प्राप्त कर ध्रुवपद तक पहुँच कर अन्त में प्रभु में विलीन होकर एकाकार हो जाना है | इस उच्चतम अवस्था को प्राप्त करने का अभ्यास सम्पूर्ण भारतवर्ष के विभिन्न सत्संग केन्द्रों पर संरक्षक द्वारा नियुक्त सत्संग संचालक प्रत्येक बृहस्पतिवार व रविवार को आयोजित सत्संग में करते व कराते है | इसके अतिरिक्त मासिक कार्यक्रम भी आयोजित कराये जाते है | सत्संग में भाग लेने के लिए कोई सदस्यता शुल्क या चंदा नहीं देना पड़ता है | इन सत्संग कार्यक्रमों में सम्मिलित होकर आप सत्संग का लाभ उठा सकते है |

इस संस्था का मुख्यालय बी-68 भूतल, सी०सी०कालोनी दिल्ली-7 में है | यहाँ साप्ताहिक सत्संग का कार्यक्रम होता है |