पूज्यनीय माताजी श्रीमती शकुन्तला देवी

(धर्मपत्नी परम संत महात्मा श्री बृजमोहन लाल जी महाराज)

जन्म    :
समाधि : 12 अप्रैल 1974

परम संत महात्मा बृजमोहन लाल जी साहब की पहली धर्मपत्नी लगभग 2 वर्ष बाद ही परमधाम को सिधार गयी थी | ऊपरी हिदायतों व रूहानी ज़रूरतों को देखते हुए पूज्यपाद लाला जी साहब ने आपका दूसरा विवाह सन् 1928 ई० में पूज्यनीय श्रीमती शकुन्तला देवी के साथ संपन्न किया |

पूज्यनीय माता जी के समर्पित जीवन से प्रभावित होकर शादी के छः महीने बाद ही मौलवी हाजी शाह अब्दुल गनी खाँ साहब ने स्वयं आदेश देकर आपको बैत फर्माया था |

पूज्यनीय माता जी जब ब्याह कर आई थी तो महात्मा बृजमोहन लाल जी साहब की ऐसी हालत थी कि कई महीने रात-रात भर माला लेकर ध्यानमग्न हो बैठ जाया करते थे और पूज्य माता जी पंखा हाँका करती थी | आपने अपने को उनके मिज़ाज के हिसाब से ऐसा ढाल लिया था कि जो वह चाहते थे वही वह करती थीं, जो वह सोचते थे वही उनके व्यवहार में झलकता था |

एक रोज़ पूज्य लालाजी महाराज ने पूज्यनीय माता जी से फ़रमाया, देखो बेटी मैंने तुम्हे ख़ास मकसद से चुना है, फ़कीर के एक हाथ में आग और एक हाथ में पानी हुआ करता है;वह पानी सबको पिलाता है, आग खुद खाता है और जो फ़कीर की आग खाने में उसका हिस्सा बँटाते है वो आगे चलकर उसी का नूर बन जाते है, उस रोशन चिराग में तेल व बत्ती का काम करते है | मुझे उम्मीद है कि तुम आँ अज़ीज़ के हाथ में से आग लेकर उसको मेरा काम करने में साथ दोगी| यह काम तुम्हारे सिवा कोई नहीं कर सकता | इसके एवज़ में मालिक तुम्हारा दर्जा बुलन्द करेगा |

सन 1928 से लेकर 1955 तक पूज्यनीय माताजी इस रूहानी आग की भट्टी में सुलगती रहीं तथा इस रौशन चिराग में तेल और बत्ती की तरह समर्पित रहीं |

महात्मा बृजमोहन लाल जी साहब के जीवन में तरह-तरह के उतार चढ़ाव आए परन्तु माताजी शिला के समान अटल रहीं | पूज्यपाद मौलवी हाजी शाह अब्दुल गनी खां साहब ने एक सत्संगी बन्धु से उनकी गुरुमाता की तारीफ़ करते हुए फर्माया था “आपकी वालिदा आपके पीरोमुर्शद की बुज़ुर्गी में चार चाँद लगाती है |”

पूज्यनीय माताजी की, महात्मा बृजमोहन लाल जी साहब को, निगाह रखना वो अपना फ़र्ज़ समझती थी | उनके बुजुर्गो का उनका सा ही अदब करना ये उनके जीवन में घुट्टी की तरह समा गया था | उनके रूहानी बच्चो की परवरिश करना, सुल्वी औलाद पर उनको तरजीह देना उनकी ज़िन्दगी का एक रियाज़ था | उनकी इच्छा में खुश होने के लिए सत्संगी बन्धुओं की परेशानी व मुसीबत आप यहाँ तक ओढ़ लिया करती थी कि सत्संगी बन्धुओं की कन्याओं के विवाह में निःसंकोच अपना जेवर तक दे दिया करती थी |

परमसंत महात्मा बृजमोहन लाल जी साहब के विसाल के बाद, 19 वर्षो तक आपने जाहिरा व बातिनी तरीके से समाज की बच्चो की तरह परवरिश की | किसी के सामने उनकी आँखों में आँसू नहीं दिखाई देते थे | जबकि अकेले में खूब जी खोलकर रो लिया करती थी |

सन् 1951 में महात्मा बृजमोहन लाल जी साहब द्वारा कायम किया गया भंडारा पहली बार उनकी समाधि स्थल पर सन् 1955 में हुआ | केवल माताजी को छोड़कर सभी के मनो में संशय था | वह फर्माया करती थीं, ”जो मुझको दिखाई देता है, वह किसी को दिखाई नहीं देता | जिसका काम है वह बड़ी खूबी के साथ उसको कर रहे है समय आने पर सब जाहिर हो जाएगा |”

जिस समय भंडारे की दोपहर की सभा में पूज्यपाद भैयाजी (परम सन्त महात्मा श्री ओमकार जी, पुत्र परम संत महात्मा श्री बृजमोहन लाल जी महाराज) अपने सद्गुरुदेव को श्रद्धांजलि अर्पित कर रहे थे तो पूज्यनीय माताजी ने एक सत्संगी बन्धु से कहा था, “उस ‘मशाल’ से ‘चिराग’ जलने लगे है – तुम देखो, (पूज्यपाद् भैय्या जी का आधा नाम लेकर) उनकी आवाज़ बदल गयी है, असर बदल गया है, मुझको ऐसा लग रहा है जैसे तुम्हारे पिताजी बोल रहे है | ”

पूज्यनीय माताजी का हर चीज़ में केवल अपने ईष्ट की मर्ज़ी को तलाशना और उस पर चलना उनके जीवन का लक्ष्य बन गया था | पूज्यपाद भैया जी की शादी के विषय में निर्णय लेने के लिए उन्होंने स्वप्न में अपने ईष्ट को यह कहते हुए सुना था कि तुम (पूज्यपाद् भैय्या जी का आधा नाम लेकर) इनकी शादी सिंघी गली आगरा वाली लड़की से कर दो; ये विवाह बहुत कामयाब होगा | पूज्यनीय माताजी ने इस विषय पर एकदम अपना निर्णय सुना दिया |

पूज्यनीय माताजी द्वारा अपने ईष्ट के इशारे पर लिए गए निर्णय के अनुसार पूज्यपाद भैया जी का विवाह श्रीमती श्यामवती देवी जी के साथ 12 मई 1956 को संपन्न हुआ | कन्या पक्ष के परिवार को सत्संग आदि के बारे में कोई जानकारी नहीं थी | विवाह होकर आने पर सबसे पहले उनको समाधि के दर्शन एवं प्रणाम हेतु ले जाया गया वहाँ उन्होंने पूज्यपाद महात्मा बृजमोहन लाल जी साहब के साक्षात् दर्शन किए, कमरे में टंगे महात्मा जी साहब के चित्र को देखकर उन्होंने तुरंत पहचान लिया कि इन्हीं बुज़ुर्ग के दर्शन समाधि में हुए | पूज्यपाद महात्मा बृजमोहन लाल जी साहब ने उनको गायबाना तौर पर बैत भी फ़रमाया था | जिसकी तस्दीक पूज्यनीय माता जी साहब ने की |

पूज्यनीय माताजी ने लगभग 18 वर्ष उनको जाहिरा व बातिनी तालीम के द्वारा तपाकर कुंदन बना दिया | पूज्यनीय माता जी का गायबाना असर उनके ऊपर उनकी आखिरी सांस तक बना रहा |

पूज्यनीय माता जी ने शुक्रवार 12 अप्रैल 1974 को जिस दिन फतेहगढ़ भंडारा शुरू ही हुआ था, दोपहर बाद कानपुर में विसाल फर्माया|

13 अप्रैल 1974 को आपका अंतिम संस्कार कानपुर में गंगा तट पर हुआ और दसवी के दिन आपके फूल लखनऊ ले जाकर परमपूज्य महात्मा बृजमोहन लाल जी साहब की समाधि के बगल में समर्पित कर दिए गए | उसके बाद आपकी गायबाना निगेहदाश्त का सिलसिला शुरू हो गया |