हजरत जनाब मौलवी अब्दुल गनी खां साहब (भौगांव)
जन्म : 07 फरवरी 1867
समाधि : 30 मार्च 1952
आपका जन्म 7 फरवरी सन् 1867 को हुआ | आप हजरत मौलाना फजल अहमद खां सा. (रह) के गुरु भाई तो थे ही पर आपकी पूर्णता इन हजरत के द्वारा ही हुई | आप बेहद कुशाग्र बुद्धिमान थे | हर परीक्षा में प्रथम आते थे | आप पूरे उत्तर प्रदेश में नार्मल की परीक्षा में प्रथम आये तो आप सीधे हेडमास्टर बना दिए गए | हजरत जनाब मौलाना अहमद अली खां साहब आपको पुत्रवत प्यार करते थे | आप वहीं उनके पास रहते थे | आप डिप्टी इंस्पेक्टर ऑफ़ स्कूल पद तक पहुंचे | आप अपने समय के महान संतो में गिने जाते थे| आपकी मन मोहिनी सूरत देखकर हर व्यक्ति मोहित हो जाता था | आवाज़ भी आपकी बड़ी मधुर थी |
एक बार एक हिन्दू अनुगामी ने आपसे चित्र के लिए प्रार्थना की तो आपका उत्तर इस प्रकार था | ‘मेरा फोटो ? ’ ‘इंशा अल्लाह मेरे जनाज़े का भी फोटो नहीं लिया जा सकेगा | मेरा फोटो कौन ले सकता है?’ और ऐसा ही हुआ|
आप जब मिडिल की परीक्षा में जाने लगे तो हजरत मौलाना अहमद अली खां साहब से निवेदन किया कि मैंने कुछ ठीक से पढ़ा नहीं है | उत्तर मिला “मैंने तो पढ़ा है , चिंता क्यूँ करते हो|” आपको उस परीक्षा में उत्तर प्रदेश भर के विद्यार्थियो में प्रथम स्थान प्राप्त हुआ|
आपके जन्म से पहले ही एक नुजूमी (ज्योतिषी) ने आपका तमाम हुलिया तथा मुख मंडल की बनावट बता दी थी और यह भी कहा था कि आप असाधारण प्रतिभा वाले (साहबे कमाल)होंगे|
आपके प्रियजन यदि कोई इच्छा मन में लेकर आपके पास जाते तो आप फरमाते “इंशाअल्लाह जा चाहते हो, वही होगा|” और वैसा ही हो जाता |
आपके आत्मविश्वास व हिम्मत का यह हाल था की आप किसी कार्य को कठिन नहीं समझते थे | अपने गुरुदेव में आपका विश्वास इतना दृढ़ व अडिग था कि जिस कार्य को जैसा चाहते वह वैसा ही होता | भक्त का भगवान के यहाँ ऐसा ही आदर होता है | आपका जलाल तेज अद्भुत था | किसी की हिम्मत नहीं होती थी कि किसी प्रकार की असभ्यता (गुस्ताखी) आपके सम्मुख कर सके| जो भी आपके सामने जाता उस तेज से प्रभावित हुए बिना नहीं रहता | आपकी सुन्दर सुडौल बड़ी-बड़ी आँखें जिधर पड़ती प्रकाश ही प्रकाश बिखेर देतीं | किसी को प्यार की दृष्टि से देख लिया तो वह निहाल हो गया |
गुरु घराने में, अर्थात् श्रीमान लालाजी महाराज, श्रीमान चच्चाजी महाराज और श्रीमान छोटे चच्चाजी महाराज (अजमेर-जयपुर वाले) द्वारा आपको बहुत आदर दिया जाता था | यह बुजुर्ग आपके सामने हाथ बांधकर खड़े होते थे |
आपके प्रथम दर्शन मैंने सन् 1926 में किए| आपके प्रति मुझे बड़ा आकर्षण हुआ | आपको भी मेरी ओर ऐसा प्रेमभाव हुआ कि जब कभी दर्शन को जाता तो चिपटा लेते और मै ऐसा गदगद हो जाता कि मुंह से शब्द नहीं निकलते | आपकी आध्यात्मिक शिक्षा का भी वही तरीका रहा बातों ही बातों में यदि किसी की आँख बंद हुई तो गहरा गोता लग गया | मुझे एक बार भौगाँव पहुँचने का आदेश दिया | वहाँ एक टूटी हुई मस्जिद में ध्यान कराया | आपने इशारे से ह्रदय चक्र के पाँचो स्थान बताए और ध्यान में बिठा कर इन पाँचो पर ॐ नाम बोलता हुआ मुझे प्रत्यक्ष सुनवा दिया | बोले – ये पाँचो चक्र तुम्हारे खुल गए है | अभ्यास करते रहना, सब ठीक हो जाएगा | मेरी धर्मपत्नी को देखने आप एक बार मेरे घर पधारे वहाँ मेरी धर्मपत्नी को आपने कुछ अस्वस्थ देखकर मुझे एक मंत्र बताया कि, तकलीफ में इसे पिला दो सब ठीक हो जाएगा | यह भी आज्ञा दी कि जिसको ठीक समझो यह मंत्र बेधड़क दे दिया करो | खुदा के फज्ल से फायदा होगा | इस मंत्र से मेरी धर्मपत्नी शीघ्र ही ठीक हो गई| फिर मैंने कितने ही असाध्य बीमारों को इससे ठीक किया |
एक बार आपकी पोस्टिंग शिकोहाबाद में हेडमास्टर के रूप में हुई| जिस मकान में आप रहने गए वहाँ एक आसेव(भूत) रहता था | वह कष्ट भी देता था | आप दालान में बिस्तर पर लेते तो सहन में एक सींगने का पेड़ था वह हिला | फिर थोड़ी देर बाद जोर से हिला | “अच्छा आप है ?” कहते हुए उठे | खूंटी से हंटर उतार कर उस पेड़ को मारना शुरू किया | मंत्र पड़ते और मारते जाते थे | उस दरख़्त की शाखे जमीन से लग लग जाती पर जब तक आप थक नहीं गए उसे मारते रहे | फिर आकर अपने बिस्तर पर लेट गए | आसेव मार से बेहाल हो चूका था | आकर पैर दबाने लगा | आपने उससे कहा, “आइन्दा शरारत देखी तो जिन्दा जला दूंगा |” फिर वह आसेव जब तक आप वहाँ रहे आपकी सेवा करता रहा | तबादला होते समय उसकी सेवा से प्रसन्न होकर आपने उसे उसकी योनी से छुड़ा दिया | संत ऐसे ही दयालु होते है | शायद आप उसी पिशाच के सौभाग्य से उस मकान में रहने गए थे |
जो भी आपकी शरण में आया आपने उसे आध्यात्म से ओतप्रोत कर दिया | हजरत फज्ल अहमद खां साहब के द्वारा आपकी आद्यात्म शिक्षा की पूर्ती हुई और परम संत सत्गुरु की पदवी आपको उन्ही के द्वारा दी गई |
महात्मा श्री बृजमोहन लाल, श्री जगमोहन नारायण, श्री राधामोहन लाल, श्री ज्योतिन्द्र मोहन व श्री नरेन्द्र मोहन को हुजुर मौलवी अब्दुल गनी खां साहब द्वारा बैअत कर दीक्षित किया गया |
अपने शिष्यों तथा सारे सत्संगी परिवार के महानुभावो को आप सन् 1952 तक सराबोर (फैज़याब) करते रहे | अंत में आप ता. 30 मार्च, 1952 को अपने प्रीतम में समा गए |
समाधि – आपकी समाधि ग्राम भौगाव (जिला मैनपुरी) में ग्राम से बाहर खेतों में, बगीचे में एकांत तथा सुन्दर स्थान पर बनी हुई है | महात्मा नरेन्द्र मोहन जी ने बताया कि एक बार मौलवी साहब ने इच्छा जाहिर की कि वे अपनी कब्र डॉक्टर कृष्ण स्वरुप जी साहब के बाग मुकाम भौगांव में बना चाहते है | डॉक्टर साहब ने उसी समय वह बाग जहाँ उनकी भव्य समाधी अब स्तिथ है, उन्हें नज़र कर दिया | यहाँ बैठते ही आध्यात्म की धारा ऐसी प्रवाहित होती है कि थोड़ी देर में सराबोर हो जाते है | तन बदन का होश नहीं रहता | यहाँ सभी सत्संगियों को जब भी अवसर (मौका) मिले जाना चाहिए व कृपा धार से लाभान्वित होना चाहिए | आपकी समाधी मनुष्य मात्र को उस भागीरथी में स्नान करने का ऐसा जरिया है जिसे किसी भी कीमत पर हासिल करने का प्रयत्न करना चाहिए |