परम संत महात्मा यशपाल जी महाराज का जीवन चरित्र

Pujya Bhai Sahabji

Pujya Bhai Sahabji

जन्म : 5 दिसम्बर 1918
समाधि : 3 अप्रैल 2000

या इलाही शाह हो, रहमत में तेरी यशपाल |

राम रघुवर बृजमोहन, वा अता के वास्ते ||

उत्तर प्रदेश में एक जिला है बुलन्दशहर जो एक टीले पट स्तिथ होने से अपनी ऊँचाई के कारण जाना जाता है | वहाँ पूज्य श्री सोहन लाल जी के घर आपका जन्म 5 दिसम्बर 1918 को हुआ | आपके पिताजी कचहरी बुलंदशहर में मुन्सरिम थे | आपने अपनी शिक्षा बुलंदशहर व इलाहाबाद में पूरी की तथा आपने अपने जीवन की शुरुआत पी०एण्ड०टी० विभाग में टेलीग्राफिस्ट के पद से शुरू की तथा अपनी कर्तव्यनिष्ठा व ईमानदारी के कारण डायरेक्टर, टेलीकम्यूनिकेशन के पद से सेवा निवृत्ति ली | आप दिसम्बर 1976 में सेवा-निवृत्त के बाद सत्संग का कार्य ही अंत समय तक गुरु भगवान के निर्देशानुसार करते रहे |

आपको अपने सत्गुरुदेव परम पूज्य परम संत महात्मा बृजमोहन लाल जी के प्रथम दर्शन सन् 1942 में अपने चाचाजी श्री मोहन लाल जी जो सत्गुरुदेव बृजमोहन लाल जी के शिष्य थे, उनके साथ हुए तभी सत्गुरुदेवजी ने आपको अपनी क्षत्रछाया में ले लिया | 16 अगस्त सन् 1946 को Direct Action Day के दिन दंगो को देखकर आपका मन उस समय के वातावरण से वैरागी हो गया तथा आप मनुष्य जीवन की सच्चाई को सोचने पर मजबूर हो गये | मन सही रास्ते की तलाश करने लगा | आप तब कलकत्ता में C०T०O० कार्यालय में कार्यरत थे | किसी प्रकार आप अवकाश लेकर परिवार सहित कष्टमय यात्रा कर मुरादाबाद पहुँचे तथा पूज्य चाचाजी के पूज्य गुरुदेव द्ददाजी महाराज (महात्मा बृजमोहन लाल जी) को पत्र दी गयी सूचना पर अचानक आपका स्थानान्तरण दिल्ली हो गया | इन घटनाओं ने आपको यह विश्वास दिला दिया कि ईश्वर सर्वशक्तिमान है वह कुछ भी कर सकता है |

तभी दिल्ली में आपके छोटे भाई श्री सत्पाल जी भी आ गए, उनके साथ रहने से तथा आध्यात्मिक संपर्क से आपके ह्रदय में परमात्मा के प्रेम का प्रकाश पैदा हुआ और आप भी प्रातः एक घंटा स्वध्याय को देने लगे, नियमित भगवान् राम की पूजा व रामायण, गीता का पठान पाठन करने लगे|

आप जब ध्यान में बैठते तो ध्यान बिल्कुल भी नहीं लगता था | पूज्य सत्पाल जी के साथ इस विषय पर बात-चीत  से आपको सत्गुरु की आवश्यकता समझ में आयी तथा श्री बृजमोहन लाल जी साहब की पत्रिका “संत” का अध्ययन भी करने लगे|

इसी बीच आपको सत्गुरुदेव महाराज पूज्य बृजमोहन लाल जी का सिकन्दराबाद सत्संग में आने का समाचार पूज्य चाचाजी श्री मोहन लालजी द्वारा मिला | आप समाचार पाकर अभूत प्रसन्न हुए तथा सिकन्दराबाद पहुँच गये | आपको देखकर पूज्य  द्ददाजी महाराज ने फ़रमाया, “बेटा तुम आ गये, खुश रहो, तुम्हारा इंतज़ार था |” आपको दशहरे के दिन 1948 को पूज्य द्ददाजी महाराज ने पूजा सिखाई तथा फ़रमाया कि “शुरू में कष्ट है सह लेना, तुम्हारा आखिर बहुत अच्छा है| तुमने बहुत अभ्यास किया है पर तुम्हे पता नहीं|”

पूजा सीखने के बाद आपको ध्यान आने लगा व आंतरिक धार शरीर में महसूस होने लगी, धीरे-धीरे आपको आध्यात्मिक अनुभव होने लगा तथा पूजा प्राप्त करने के बारह दिन बाद ही पूज्य द्ददाजी महाराज ने आपको लिखा क्या पता परमात्मा तुम्हारे रूप में ही वह बालक हमको दे रहा हो जिसके बारे में हमारे फतेहगढ़ वाले महात्मा जी ने फ़रमाया था कि तुम्हे एक ऐसा प्रेमी मिलेगा जो हमारा तुम्हारा सबका नाम ऊँचा कर देगा | परमात्मा से यही प्रार्थना है कि वह अपना सच्चा प्रेम व ज्ञान प्रकाश प्रदान करे|

पत्र पढ़ने के बाद आपकी ध्यान की अवस्था बहुत गहरी हो गयी| आप हर समय अपने गुरु भगवान् में लीन रहने लगे | आपका गुरु प्रेम आज के साधको के लिए एक प्रेरणा व सबक है | आपकी साधना व गुरु प्रेम के कारण ही आपको पूज्य सत्गुरु देव महात्मा बृजमोहन लाल जी ने केवल दस माह बाद ही जुलाई 1949 में बैअत प्रदान कर दी | आपकी धर्मपत्नी (पूज्य माताजी) को भी गुरु महाराज ने इसी वर्ष बैअत अता फरमाई| आपको स्वप्न में मुक्त आत्माओं द्वारा भी तवज्जह दी गयी | इन स्वप्नों की जब आपने गुरु महाराज को जानकारी दी तब उन्होंने फ़रमाया था कि जब गुरु से प्रेम बढ़ जाता है तब दोनों आत्माए एक हो जाती है, तब मुक्त आत्माओं के दर्शन होते है |

4 जून 1951 को परम पूज्य द्ददाजी महाराज (महात्मा बृजमोहन लाल जी) ने आपको पूर्ण इजाज़त देते हुये फ़रमाया था | इस अज़ीज़ से बहुत उम्मीदे है जहाँ जायेगा नया सत्संग कायम करेगा, मालिक ने चाहा तो अज़ीज़ की तवज्जो में वह कशिश पैदा होगी कि संपर्क में आये कठोर से कठोर ह्रदय में प्रभु-प्रेम की लहर पैदा हो जायेगी | परमात्मा चाहेगा तो अज़ीज़ से मिशन को काफी तरक्की मिलेगी | इश्वर मालिक है | परम पूज्य माताजी (धर्मपत्नी जी) के विषय में आपने फ़रमाया था कि आप इन्हें क्या समझते है, बड़ी-बड़ी मंजिले जो अच्छे-अच्छे योगियों को दुर्लभ है पार कर ली है, पूर्ण ज्ञानी है पर जुबान नहीं है |

17 जनवरी 1955 को परम पूज्य परम संत महात्मा बृजमोहन लाल जी ने बम्बई में पूर्ण समाधी ले ली | तब यह लगने लगा कि आगे क्या होगा | गुरु देव के शरीर छोड़ने से आप विरक्त से हो गए तथा संसार नीरस लगने लगा | उस समय आप जबलपुर में सत्संग कराते थे | आपने सभी सत्संगी भाईयो से कहा कि भई अब तो वे गये, सब अपने-अपने घरो पर बैठकर उनका बताया अभ्यास करते रहे | दो दिन के बाद ही आपको लगा कि जैसे वह (गुरु देव) आये (निर्वाण के बाद) और उन्होंने आपको झकझोर दिया और नाराज़गी के साथ कहा कि क्या तू मेरा काम नहीं करेगा | इस घटना से आपको यकीन हो गया कि परम पूज्य सत्गुरुदेवजी मौजूद है | आप सभी सत्संगी भाइयो के यहाँ गये और कहा कि रविवार का सत्संग जैसा होता था, होता रहेगा | जनवरी 1956 में उनकी बरसी पड़ी | आपको पत्र भी मिला | आपका वहाँ जाने का इरादा न था परन्तु आपकी परिस्थितियाँ ऐसी हो गयी कि आपको बम्बई जाना पड़ा | श्री मित्तल साहब जो आपके गुरु भाई थे, उनको स्वप्न में दर्शन हुये कि आप पूज्य गुरुदेव जी को लिवा कर ला रहे है | इससे आपको आत्मिक बल मिला और बम्बई में निर्वाण उत्सव के कार्यक्रम को आपने संपन्न कराया |

जब आप दिल्ली स्थानान्तरित होकर आ गये तो आपने दिल्ली में जो अन्य दो भाई थे के साथ मिलकर सत्संग दिल्ली में पुनः करना शुरू कर दिया | सत्गुरु देव परम पूज्य बृजमोहन लाल जी की प्रेरणा से आपने रामनवमी के दिन सन् 1958 में पहला भण्डारा प्रारम्भ कराया |

तब से यह भण्डारा निरंतर रामनवमी पर हो रहा है | 1970 से यह भण्डारा अनंगपुर आश्रम में हो रहा है, जहाँ आपने बुजुर्गो की कृपाधार को इस पावन भूमि पर उतार कर हजारो साधको के ह्रदय को पवित्र प्रेम से भर दिया | भंडारे का कार्यक्रम परम पूज्य सत्गुरु देव बृजमोहन लाल जी के समय में जैसा चपता था ठीक वैसा ही छपवाया तथा ठीक वैसा ही कार्यक्रम रखा और बुजुर्गों की तरीकत को नये साधको तक पहुँचाया | आपने अखिल भारतीय संतमत सत्संग की नीव डाली और उसका रजिसट्रेशन 4.8.1968 को करा लिया | “आनंद-योग”, “बृजमोहन वचनामृत”, “गीता”, “अष्टावक्र गीता”, “पुष्पांजलि”, “साधना पद्दति” आदि बहुत सी पुस्तके लिखी | एक पत्रिका संत सुधा भी निकाली |

आपके द्वारा नियुक्त मार्ग निर्देशक (सत्संग संचालक) आपकी रहनुमाई में, भारत वर्ष के सभी प्रांत व शहरो में जगह जगह सत्संग केन्द्रों पर शाखाये चला रहे है | आपने संत बृजमोहन लाल स्कूल व अस्पताल भी अनंगपुर आश्रम पर स्थापित किये|

आपने सरकारी ऊँचे पद से रिटायर होने के बाद भी अपना जीवन बड़ा साधारण रखा | आप ब्रह्म विद्या के पूर्ण जानकार होते हुए भी अहंकार व दिखावे से कोसो दूर रहते थे | आपके सानिध्य में रहकर भी लोगो को आपको पहचानने में भूल रहती थी | चमत्कार आपके सभी साधको ने अपनी-अपनी ज़िन्दगी में अनुभव किये | चमत्कार आप कभी जाहिर नहीं होने देते थे | अपने सरकारी नौकरी में आपने ईमानदारी व कर्तव्यनिष्ठा को कभी नहीं छोड़ा चाहे कितना ही कष्ट क्यों न उठाना पड़ा हो | स्वयं को गुरु कहलवाना व पैर छुलवाना पसंद नहीं था | कभी-कभी नाराज़ भी हो जाते थे, कहते हम तुम्हारे भाई है | स्वयं को सेवक कहकर सम्बोधित करते | गुरु तो सबका परमात्मा है | ऐसा सबसे कहते थे |

आध्यात्म में आप अभ्यास व रहनी-सहनी पर अधिक जोर देते थे | सभी को सूक्ष्म अहंकार से दूर रहकर सबकी सेवा करने को कहते थे | आपका व्यक्तित्व व प्रेम ऐसा था  कि जो आपसे एक बार मिल लेता था आपका होकर रह जाता था | आपका सभी शिष्यों पर सामान प्रेम रहता था | आप से कोई झूठ नहीं बोल सकता था | आप सबके मन की बातों को जान लेते थे कुछ छिप नहीं सकता था | कोई भी साधक अपनी उलझन व प्रश्न लेकर जाता तो प्रवचन में उसे वहीं उसका जवाब मिल जाता था |

आप अपना जीवन सादगी से बिताते रहे व भूले भटके प्राणियों को सही राह दिखाते रहे | आप सत्संग में अपने पेंशन का एक भाग स्वाम सत्संग में दान करते थे, दूजा घर आने वाला कोई भी भाई बिना भोजन किए नहीं जा सकते थे | सत्संग के पैसे को सभी का समझते थे | अपने ऊपर एक पैसा भी सत्संग का खर्च करना सही नहीं मानते थे | सभी शिष्य आपको अपने सबसे निकट समझते थे | ऐसा सुन्दर व्यवहार आपका सभी के प्रति था | बातों-बातों आप साधको को आध्यात्म की ऊँचाई पर पहुँचा देते थे | आप प्रत्येक साधक का ध्यान रखते थे | उनके प्रेम की विशेषता थी कि प्रत्येक साधक यही समझता था कि गुरु देव उसे ही सबसे ज्यादा प्रेम करते है | उन्होंने अपने गुरुदेव के रास्ते को ज्यों का त्यों रखा किसी भी तरह जरा सा इधर से उधर नहीं किया बुजुर्गो की तरीकत को ज्यों का त्यों स्वाम में ढाल कर दुनिया को इसकी मिसाल दी | उनके बड़े सुपुत्र पूज्य परम संत महात्मा रमेश जी भी उनके दिखाए रास्ते पर बुजुर्गो की तरीकर को कायम रखते हुए आज यश-रूप साधना पीठ के माध्यम से पावन रौशनी को जन-जन में पहुँचाने का प्रयास कर रहे है |

3 अप्रैल सन् 2000 को आपने इस नश्वर संसार का त्याग कर दिया | आपकी समाधी अनंगपुर आश्रम, जिला-फरीदाबाद (हरियाणा) में है | यहाँ बैठकर साधको को अनुपम फैज़ का अनुभव होता है |